Himachal Pradesh – Ghumakkadguide https://ghumakkadguide.com Fri, 25 Apr 2025 04:50:31 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.1 श्री नैना देवी https://ghumakkadguide.com/trip/shree-naina-devi/ https://ghumakkadguide.com/trip/shree-naina-devi/#respond Fri, 25 Apr 2025 04:37:42 +0000 https://ghumakkadguide.com/?post_type=trip&p=7821

प्रस्तावना: श्री नैना देवी मंदिर (संस्कृत: नयना देवी मन्दिर) हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित है और हिंदू धर्म के 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियो पर स्थित एक भव्य मंदिर है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 1,219 मीटर की ऊंचाई पर शिवालिक पर्वत श्रृंखला की पहाड़ियों पर स्थित है। वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा मे माँ चामुण्डा देवी, माँ वज्रेश्वरी देवी, माँ ज्वाला देवी, माँ चिंतपुरणी देवी, माँ नैना देवी, माँ मनसा देवी, माँ कालिका देवी, माँ शाकम्भरी देवी सहारनपुर आदि शामिल हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग, उड़नखटोले (रोपवे) और पैदल मार्ग की सुविधाएं उपलब्ध हैं।

पौराणिक मान्यता: नैना देवी मंदिर शक्ति पीठ मंदिरों मे से एक है। पूरे भारतवर्ष मे कुल 51 शक्तिपीठ है। जिन सभी की उत्पत्ति कथा एक ही है। यह सभी मंदिर भगवान शिव और माता शक्ति से जुड़े हुऐ है। धार्मिक ग्रंधो के अनुसार इन सभी स्थलो पर देवी के अंग गिरे थे। भगवान शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमे उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नही किया क्योंकि वह भगवान शिव को अपने बराबर का नही समझते थे। यह बात माता सती को काफी बुरी लगी और वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयी। यज्ञ स्‍थल पर भगवान शिव का काफी अपमान किया गया जिसे माता सती सहन न कर सकीं और वह हवन कुण्ड में कुद गयीं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और माता सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांट दिया जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। कोलकाता में केश गिरने के कारण महाकाली, नगरकोट में स्तनों का कुछ भाग गिरने से माता बृजेश्वरी, ज्वालामुखी में जीह्वा गिरने से माता ज्वाला देवी, हरियाणा के पंचकुला के पास मस्तिष्क का अग्रिम भाग गिरने के कारण माता मनसा देवी, कुरुक्षेत्र में टखना गिरने के कारण माता भद्रकाली,सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने के कारण माता शाकम्भरी देवी, कराची के पास ब्रह्मरंध्र गिरने से माता हिंगलाज भवानी, असम में कोख गिरने से माता कामाख्या देवी, चरणों के कुछ अंश गिरने के कारण माता चिंतपूर्णी आदि शक्ति पीठ बन गए। मान्यता है कि नैना देवी मे माता सती के नेत्र गिरे थे।

भौगोलिक स्थिति: मंदिर के गर्भगृह में तीन मुख्य मूर्तियां स्थापित हैं: दाईं ओर माता काली, मध्य में नैना देवी, और बाईं ओर भगवान गणेश की प्रतिमा। मंदिर परिसर में एक प्राचीन पीपल का वृक्ष भी है, जो श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है।
नैना देवी मंदिर के प्रमुख त्यौहार: नैना देवी मंदिर में नवरात्रि का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। वर्ष में आने वाली दोनो नवरात्रि, चैत्र मास और अश्‍िवन मास के नवरात्रि में यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आकर माता नैना देवी की कृपा प्राप्त करते है। माता को भोग के रूप में छप्पन प्रकार कि वस्तुओं का भोग लगाया जाता है। श्रावण अष्टमी को यहा पर भव्य व आकषर्क मेले का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि में आने वाले श्रद्धालुओं कि संख्या दोगुनी हो जाती है। बाकि अन्य त्योहार भी यहां पर काफी धूमधाम से मनाये जाते है।
खुलने का समय: नैना देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित एक प्रमुख शक्तिपीठ है। मंदिर के दर्शन समय निम्नानुसार हैं:
• सामान्य दिनों में: सुबह 4:00 बजे से रात 10:00 बजे तक।
• नवरात्रि के दौरान: सुबह 2:00 बजे से रात 12:00 बजे तक। यात्रा से पहले मंदिर के आधिकारिक वेबसाइट पर नवीनतम जानकारी की पुष्टि करना उचित होगा, क्योंकि समय में परिवर्तन हो सकता है।
आवागमन:
वायु मार्ग-हवाई जहाज से जाने वाले पर्यटक चंडीगढ़ विमानक्षेत्र तक वायु मार्ग से जा सकते है। इसके बाद बस या कार की सुविधा ले सकते है। दूसरा नजदीकी हवाई अड्डा’अमृतसर विमानक्षेत्र में है।
रेल मार्ग-नैना देवी जाने के लिए पर्यटक चंडीगढ और पालमपुर तक रेल सुविधा ले सकते है। इसके पश्चात बस, कार व अन्य वाहनो से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। चंडीगढ देश के सभी प्रमुख शहरो से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग-नैनादेवी दिल्ली से 350 कि॰मी॰ कि दूरी पर स्थित है। दिल्ली से करनाल, चण्डीगढ, रोपड़ होते हुए पर्यटक नैना देवी पहुंच सकते है। सड़क मार्ग सभी सुविधाओ से युक्त है। रास्ते मे काफी सारे होटल है जहां पर विश्राम किया जा सकता है। सड़के पक्की बनी हुई है।

कौन सा मौसम अच्छा:
नैना देवी मंदिर देखने के लिए सबसे अच्छा मौसम मार्च से जून और सितंबर से नवंबर के बीच का होता है। यहां मौसम के अनुसार यात्रा का अनुभव इस तरह रहेगा:
गर्मी (मार्च से जून):
• यह सबसे अच्छा समय माना जाता है यात्रा के लिए।
• मौसम सुहावना होता है, ज्यादा गर्मी नहीं होती, और रास्ते खुले रहते हैं।
• मंदिर के आसपास के पहाड़ी नज़ारे भी साफ और सुंदर दिखते हैं।
मानसून (जुलाई से अगस्त):
• बारिश का मौसम होने के कारण रास्ते फिसलन भरे हो सकते हैं।
• कभी-कभी भूस्खलन की आशंका भी होती है।
• यात्रा थोड़ी मुश्किल हो सकती है, लेकिन हरियाली बहुत खूबसूरत होती है।
सर्दी (नवंबर से फरवरी):
• मौसम ठंडा रहता है और कुछ जगहों पर बर्फबारी भी हो सकती है।
• श्रद्धालु जा सकते हैं, लेकिन ठंड से सावधान रहना जरूरी है।
• दिसंबर और जनवरी में तापमान काफी गिर जाता है।

कहाँ ठहरे:
श्री नैना देवी मंदिर के दर्शन के लिए ठहरने की विभिन्न व्यवस्थाएँ उपलब्ध हैं, जो आपकी सुविधा और बजट के अनुसार चुनी जा सकती हैं।इसके साथ ही मंदिर ट्रस्ट द्वारा नि:शुल्क ठहरने की सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं:
• पटियाला धर्मशाला और लंगर भवन: लगभग 1,000 श्रद्धालुओं के ठहरने की क्षमता।
• मातृ आंचल, मातृ छाया, और मातृ शरण: 45 कमरों और 14 डॉर्मिटरीज़ के साथ अतिरिक्त आवासीय सुविधाएँ

सावधानियाँ: नैना देवी मंदिर की यात्रा एक धार्मिक और भावनात्मक अनुभव होता है, लेकिन पहाड़ी क्षेत्र और भीड़-भाड़ को ध्यान में रखते हुए कुछ सावधानियाँ रखना ज़रूरी है। नीचे कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं:
धार्मिक और सामान्य सावधानियाँ
1. श्रद्धा और अनुशासन रखें – मंदिर में मर्यादा बनाए रखें, लाइन में खड़े रहें और दूसरों को धक्का न दें।
2. भारी भीड़ में सतर्क रहें – विशेष अवसरों पर भीड़ बहुत अधिक हो सकती है, बच्चों और बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखें।
3. धार्मिक भावनाओं का सम्मान करें – मंदिर परिसर में फोटो या वीडियो लेने से पहले अनुमति लें।
यात्रा से जुड़ी सावधानियाँ
1. सादा और आरामदायक कपड़े पहनें – खासकर चढ़ाई के समय ढीले और आरामदायक कपड़े व अच्छे ग्रिप वाले जूते पहनें।
2. पानी और हल्का खाना साथ रखें – चढ़ाई के दौरान थकान महसूस हो सकती है, इसलिए हाइड्रेटेड रहना जरूरी है।
3. बुजुर्ग और बीमार व्यक्तियों के लिए पालकी या रोपवे – रोपवे सेवा का उपयोग किया जा सकता है, जिससे चढ़ाई आसान हो जाती है।
4. मौसम की जानकारी रखें – मानसून में फिसलन हो सकती है, और सर्दियों में ठंड बहुत ज़्यादा होती है।

सामान और सुरक्षा
1. महंगे सामान न लाएं – भीड़भाड़ में चोरी का खतरा हो सकता है।
2. पहचान पत्र और कुछ नकद रखें – कार्ड के साथ-साथ थोड़ा नकद भी रखें क्योंकि हर जगह ऑनलाइन पेमेंट की सुविधा नहीं होती।
3. स्थानीय नंबर और होटल की जानकारी नोट करें – आपातकाल की स्थिति में काम आ सकती है।
स्वास्थ्य से जुड़ी सावधानियाँ
1. फर्स्ट एड किट रखें – जैसे बैंड-एड, दर्द निवारक, दवा आदि।
2. पहाड़ी क्षेत्र में साँस की दिक्कत हो सकती है – अगर आपको कोई स्वास्थ्य संबंधी परेशानी है तो डॉक्टर की सलाह ज़रूर लें।
3. टॉयलेट और साफ-सफाई का ध्यान रखें – मंदिर परिसर में साफ-सफाई बनाए रखना जरूरी है।

फीस/शुल्क:
नैना देवी मंदिर में दर्शन के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता; यह सभी भक्तों के लिए नि:शुल्क है। हालांकि, यदि आप मंदिर तक पहुँचने के लिए रोपवे का उपयोग करना चाहते हैं, तो इसके लिए शुल्क निर्धारित हैं:
• वयस्कों के लिए: एकतरफा यात्रा ₹130, और दोतरफा यात्रा ₹190
• बच्चों के लिए: एकतरफा यात्रा ₹60, और दोतरफा यात्रा ₹90
• रोपवे में एक समय में लगभग 6 व्यक्ति यात्रा कर सकते हैं।
यात्रा से पहले इन शुल्कों की पुष्टि करना उचित होगा, क्योंकि समय के साथ इनमें परिवर्तन हो सकता है

प्रमुख व्यंजन:
नैना देवी यात्रा के दौरान आपको हिमाचली स्वाद और उत्तर भारतीय व्यंजन दोनों का स्वाद चखने का मौका मिलेगा। मंदिर क्षेत्र में और आसपास के कस्बों में कई छोटे-छोटे ढाबे, लंगर और स्थानीय स्टॉल मिलते हैं। यहाँ कुछ फेमस और लोकप्रिय खाने की चीज़ें दी गई हैं:

भक्तों के लिए पारंपरिक भोजन
1. लंगर का प्रसाद (Free Langar)
o मंदिर परिसर में लंगर भवन में मिलने वाला सादा और सात्विक खाना – दाल, चावल, सब्ज़ी, रोटी और हलवा।
o यह भोजन निःशुल्क होता है और बहुत श्रद्धा के साथ परोसा जाता है।
2. पूड़ी-सब्ज़ी और हलवा
o मंदिर के पास के स्टॉल्स में अक्सर यह प्रसाद के रूप में मिलता है।

स्थानीय हिमाचली व्यंजन
1. माधरा-यह चने या राजमा से बनी गाढ़ी करी होती है, जो दही में पकाई जाती है।
2. सिद्दू-एक तरह की भाप में पकी ब्रेड, जो खासतौर पर सर्दियों में खाई जाती है।
3. बबरु-कचौरी जैसा व्यंजन, जिसे मीठे या नमकीन रूप में खाया जाता है।
4. तिल के लड्डू / मीठे पकवान-स्थानीय दुकानों पर मिलने वाले ताजे और घर के बने तिल, गुड़ और मूंगफली से बने लड्डू।


अन्य आम लेकिन पसंदीदा चीज़ें
• गरमागरम चाय और पकौड़े
• कॉर्न (भुट्टा), विशेषकर मानसून में
• फल और ड्राई फ्रूट्स – यात्रा के दौरान ऊर्जा के लिए
• हिमाचली चटनी के साथ परोसे जाने वाले स्नैक्स

सुझाव:
• भीड़-भाड़ वाले जगहों में खाने से पहले साफ़-सफाई का ध्यान रखें।
• ज्यादा भारी खाना न खाएँ अगर आपको चढ़ाई करनी है।
• स्थानीय लोगों से पूछकर बेस्ट ढाबे या दुकानों की जानकारी लें – अक्सर वहीं असली स्वाद छुपा होता है।

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